जीते जी मिले या मरने के बाद ,मिलता है हर कर्म का फल ....
यह एक ऑटोमेटिक प्रक्रिया है – जैसी करनी
वैसे फल , आज नहीं निश्चय कल | दुष्कर्म करके उसके दंड से नहीं बचा जा सकता | जिस
प्रकार सत्कर्मो का अच्छा फल मिलता है , उसी प्रकार अपराधो के लिए सजा अवश्य मिलती
है |
समय लग सकता है | आज का फल आज मिलने से
व्यक्ति भ्रम में पद सकता है और यह सोच सकता है की बुरे कर्म के दंड से बाख गए या
भला कर्म निष्फल चला गया , पर वस्तुतः ऐसा होता कभी नहीं | तुरंत या कालान्तर में
इसका फल अवश्य मिलता है | परन्तु फल का यह रहस्य अज्ञात होने के कारण
प्रत्यक्षवादी , उतावले , अनास्थावान हो उठते है | पर यदि धेर्य रखा जाये तो
प्रतीत होगा की इसी जन्म में अथवा अगले जन्म में प्रत्येक कर्म का भला – बुरा
परिणाम मिलना सुनिश्चित है | उसी व्यवस्था क्रम पर तो यह विश्व टिका है | यदि यह
असदिघ्द हो जाये तो फिर ऐसा अंधेर फेले , ऐसी अराजकता उपजे की कही कुछ संभलना –
संभालना संभव न हो सके | फिर न कोई पाप से डरे और न पुण्य का झंझट और न कोई नुकसान
|
पापी की अन्तरात्मा
द्रष्टिकोण अपने आप में चित की प्रसन्नता –
अप्रसन्नता , संतोष , शांति अशांति बनकर
पग- पग पर फलित होता रहता है | सत्कर्म करने पर मन में अनायास ही संतोष और उल्लास
उठता रहता है किसी कष्ट पीड़ित की सहायता अपना काम हर्ज करके यदि कर दी जाये तो
भीतर ही भीतर एक परम सात्विक हल्का और शीतल मलयज पवन जैसा आनंद उठता अनुभव होगा |
इसके विपरीत यदि चोरी , ठगी ,अनीति बरतकर किसी को हानी पहुंचाई होगी तो भीतर ही
भीतर कोई खटमल , पिस्सू की तरह कट रहा होगा और आत्मग्लानी से अंत : करण में उद्देग
बढ़ रहा होगा |
युवती को देखने की द्रष्टि कैसी है
जो हर युवती को अपनी पुत्री की तरह देख
सके , पराये पैसे को ठीकरी जैसा समझे , अपने स्वलप उपार्जन से सादगी का जीवन जीते हुए संतुष्ट रहे
, चरित्र उज्जवल रखे और दुसरो के प्रति स्नेह सहयोग भरा द्रष्टिकोण रखे , उसे
निरंतर अपने भीतर एक अमृत जैसी निझर्रिणी कल – कल ध्वनी से प्रवाहित होती हुई
अनुभव होगी और लगेगा की भावना छेत्र अलोकिक सुषमा ही प्राद्भूर्त हो रही है | मरने
के बाद भी भले – बुरे कर्मो के दंड कितने ही प्रकार से मिलते होंगे | दो जन्मो के
बिच सुखद और कष्टकर स्थति रहती होगी |
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