Friday 5 June 2015

चितचोर का महल

Posted by- radiateashok
चितचोर का महल

बरखा सहेलियों संग मेले से वापस आ रही थी | प्यास के मारे गला सुख रहा था | घर को आने वाली राह पर न कोई पेड़ था और न कोई पानी पिने का जरिया | राह में एक गड्ढे में भरा पानी देखकर बरखा ने उसे पिने को सोचा , पर सहेलियों ने हिम्मत बंधाई | घर की दूरी मेले से तीन किलोमीटर थी और दो किलोमीटर के लगभग चल चुकी थी | एक किलोमीटर का एक – एक कदम एक – एक मील सा लग रहा था | धुप अपने चरम पर थी | दूर – दूर तक खेत थे | तभी उसे कुछ दूर खेत में एक आदमी 





काम करते दिखा | उसने उसे आवाज दी – ऐ यहाँ आओ | उस व्यक्ति ने उसकी तरफ देखा और फिर काम में लग गया | उसने उसे दोबारा पुकारा | वह काम छोड़कर उसकी तरफ देखने लगा | बरखा हाथो से इशारा कर उसे बुला रही थी | उसने दूर से ही कहा –में, तो बरखा ने हां में सर हिला  दिया | वह जैसे जैसे नजदीक आ रहा था बरखा को उम्मीद लग रही थी शायद कुछ पानी हो  तो उसे मिल सके | पास आया तो देखा वह एक सत्रह – अठारह साल का  नोजवान था | बरखा ने बड़ी उम्मीद से पूछा – क्या थोड़ा पानी कही मिल जायेगा ? वह बोला , बिलकुल मिलेगा  जरा यही ठहरो , में अभी लाया | वह खेत की और गया और जहा उसकी पानी की बोतल रखी थी उसे उठाया और बरखा की और  देखा | बरखा बोली जल्दी ले आओ | उसने न में सर हिलाया और खाली बोतल को जमीं की और पलट दिया | बरखा को उसका मतलब समझ आ चूका था | वह अब और नहीं चल सकती थी | उसे चक्कर आ गया और वह गिर गई |  साथ में दो सहेलियां द्रश्य देख घबरा गई | वे खुद भी प्यास से परेशान थी | नवयुवक ने बरखा  को गिरते देखा तो वह बोतल छोड़ बरखा की और भागा  | उसने उसे गोदी में उठाकर भागना शुरू किया उसकी सहेली प्रशन दाग रही थी की कहा लिए जा रहे हो ? नवयुवक बोला – देखो मेरा गाँव नजदीक ही है | में वहां से पानी का बंदोबस्त करूँगा , जो इसकी प्राणरक्षा के लिए अनिवार्य है | सहेलिया  पीछे दोड़ रही थी की तभी एक और युवती गिर गई |  अब एकमात्र शेष युवती को देखकर उसने कहा देखो – तुम यही रुको और में पानी लेकर आता हूँ तब तक इसे देखना | बरखा की सहेली ने उत्तर दिया , अब अधिक में भी ....कहकर गले पर हाथ फेरने लगी  | वह नवयुक मंजिल की और चल पड़ा | बरखा को पानी के छीटे दिए और कुछ पानी मुंह में डाला तो वह होश में आ गई  | युवक ने पूछा क्या नाम है तुम्हारा ? वह बोली-  बरखा | नवयुवक ने उसकी तरफ घूमकर कहा – जल्दी से मेरे साथ चलो , नहीं तो तुम्हारी दोनों सहेलिया प्राण त्याग देगी | बरखा अवाक् होकर बोली – क्यों कहा है वे दोनों और कैसी है ? नवयुवक ने उत्तर दिया – जल्दी साथ आओ |यह कहकर उसने पानी का मग्गा उठाया और तेज गति से चल दिया | बरखा उसके पीछे थी | उसने देखा पेड़ के निचे उसकी दोनों सहेलियां बेहोश पड़ी है जिसमे एक पानी – पानी बुदबुदा रही है | नवयुवक ने उन्हें जल्दी से पानी दिया | दोनों होश में आई | बरखा ने उस नवयुवक से पूछा – नाम क्या है ? तो उसने कहा – बस यूँ समझिये सागर ने बरखा को पानी पिलाया | और यह कहकर वह शांत हो गया | काफी देर वही शीतल छाया में चारो बाते करते रहे  | सागर ने कहा – जब बरखा बिना पानी के रहेगी तो क्या होगा ? बरखा ने बात काटते हुए कहा – होगा क्या बरखा सागर से पानी मांग लेगी | दोनों ने एक दुसरे की तरफ घूरकर देखा | सड़क दूर थी | सागर ने कहा – अब आप लोगो को अपने घर जाना चाहिए | चलो में छोड़ देता हूँ | बरखा ने कहा छोड़ क्यों दोगे ? सागर ने कहा - क्या मतलब ? बरखा बोली हम लोग किसी से डरते नही है | सागर हंस पड़ा | सड़क अब भी कुछ दुरी पर थी | अपने खेत तक सागर साथ आया | वे तीनो चलने लगी तो बरखा बोली – चलोगे नहीं ? सागर ने कहा – कहाँ चलना है ? बरखा ने उत्तर दिया छोड़ने | सागर फिर हंसा और साथ चल दिया | सागर ने अपने खेत में देखा की खेत में काम करने के लिए वह जो कुछ लाया था , वह सब कुछ गायब था | बरखा ने जब यह जाना तो खूब हंसी | बरखा की हंसी सागर के दिल में आकर्षण और प्रेम की लहरों पर तरंग सी पैदा करने लगी | सागर बोला अब तो आपके घर तक चलूँगा | बरखा बोली – क्यों ? सागर का जवाब था – तुम्हारे घर से गायब चीजो के पैसे लेने है | सब घर पहुंचे | बरखा का घर पहले ही पड़ता था | सब वही पहुंचे | बरखा का पूरा घर परेशान था | उसके पिताजी तो ढूंढने को निकलने वाले ही थे | सहेलियों ने सब कथा कह डाली | बरखा का घर बहुत बड़ा था | धन की कोई कमी न थी उसके घर में चर्चा छिड  गई | देखो खेतिहर का इतना नुकसान बहुत है | गरीब आदमी की तो वही सम्पति | सागर बोला – नहीं , इसमें गरीबी – अमीरी की कोई बात नहीं है | बरखा की माँ बोली – अरे बेटे , मुझे तेरा नुकसान खल गया | बहुत पैसा है कुछ मांग ही लेता | आप अमूल्य वस्तु का मूल्य लगा रही हो , खेर | सागर ने सब के बिच में अचानक कहा और फिर कुछ रुककर कहा – अच्छा मेरे चोरी सामान के पैसे दो , में चलूँ | बरखा चोंक पड़ी | वह खुशी से अपने चोरी सामान का पैसा लेकर चल दिया | बरखा दरवाजे तक उसे छोड़ने बाहर आई और बोली – भाई जो तुम्हारा नुकसान हुआ ,खेद है | वह चला गया और बरखा निहारती रह गई | अगले दिन बरखा के बापू उसकी शादी के लिए लड़का देखने एक पड़ोस के गाँव गए | बरखा की सहेलियों ने उससे मजाक शुरू कर दी | बरखा बोली – वह चित तो चुरा ही ले गया है , बाकी किस्मत में उससे अच्छा तो न आएगा | सहेलिया भी उसकी पीड़ा समझ गई | शाम को सुचना मिली की रिश्ता पक्का हो गया | वो बरखा के घर से दस गुना अमीर है | उनके सामने बरखा के घर की कोई अहमियत नहीं | गाँव में इस शादी की चर्चा फेल गई | दिखाई पक्की हुई | बरखा निर्धारित जगह अपने परिवार और उन्ही सहेलियों के साथ लड़का देखने पहुंची | लड़के वाले आ गए और फिर लड़के का प्रवेश हुआ | बरखा सर ऊपर नहीं उठा रही थी | तभी आवाज आई अरे तुम देख भी लो | सहेलियों की यह ठिठोली उसे तनिक न भाई | वह लज्जा के बोझ मारे और झुक गई | कुछ भी उतर वह कैसे दे पाती | शब्द –शब्द पर पहरे जो थे | तभी सहेली फिर बोली – देखो बरखा को सागर ही तो पानी देता है , यह सुन बरखा क्रोध से लाल हो उठी तमतमाकर उसने सहेलियों को घुरा | देखने आया लड़का चुप्पी तोड़ते हुए बोला – ठीक ही है | बरखा के कान यह आवाज सुनते ही कोतुहल और हर्ष में डूब उठे |  सागर की यह आवाज उसके शरीर में बिजली बनकर कोंध गई | उसने प्रेमी को देखने के लिए अपनी पलके उठाई | वह उसके मुहं को देखने की तलब को शांत करने से खुद को नहीं रोक पाई | यह वही महलों का चितचोर | विधाता को धन्यवाद् देते हुए वह खुद को नहीं रोक पाई
शब्दों पर लगे पहरे टूट गए |  सामाजिक सारे बंधन उस प्रेम के सामने बोने थे तुम कब आये ? कहकर इधर – उधर देखकर फिर सकुचा गई | लज्जा के पहरों ने फिर शब्दों पर बंदिसे लगा दी | सहेलियों ने जोर से हंस दिया तो बरखा ने उन दोनों का हाथ पकड़कर जोर से दबाया वे और जोर से हंस पड़ी बरखा की माँ के मुहं से कोई शब्द न निकल रहे थे वह फटी आखो से देख रही थी | वह सोच रही थी गरीब तो हम है दिल से भी और धन से भीं अमीर तो यही है दिल से भी और धन से भी | दिखाई की रस्म पूरी हो चुकी थी शादी की तारिक पक्की हो गई

बरखा और उसकी सहेलिया जश्न में डूबी थी उसी चितचोर की बाते होती आपस में हंसी मजाक सबका मुद्दा चितचोर होता कभी कभी बरखा नाराज भी हो उठती अब उसका दिल बेसब्री से इंतजार कर रहा था बरखा अधूरी और अस्तित्वहिन् जो थी सागर के बिना जल्द ही वह अपने महलों के चितचोर के साथ जाने वाली थी एक सुखद जीवन की आस में |  वह दिन रात सोचती कितना सुंदर होगा मेरे चितचोर का महल | और आखिर वो दिन आ ही गया जिस दिन बरखा अपने चितचोर के साथ चली गई | 

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