देता छप्पर फाड़ के
रामू किसान बहुत ही ईमानदार और भोला – भाला था |
वह सदा ही दुसरो की सहायता करने के लिए तैयार रहता था |एक बार की बात है | शाम के
समय वह दीर्घ शंका के लिए खेत की और गया | वापसी में वह ज्योही घर की और चला, वैसे
ही उसके पैर में एक अरहर की खूंटी गड गई | उसने सोचा, यह किसी और के पैर में गड़े,
इससे अच्छा है की इसे उखाड़ दूँ | उसने जोर लगाकर खूंटी को उखाड़ दिया | खूंटी के
निचे उसे कुछ सोने की अशर्फिया दिखाई दी | उसके दिमाग में आया, पता नहीं यह किसकी
है ? अगर ये मेरे लिए है तो जिस राम ने दिखाया, वह घर भी पहुचायेगा | इसके बाद
उसने घर आकर उसने यह बात अपनी पत्नी को बताई | रामू की पत्नी उससे भी भोली थी |
उसने यह बात अपने पड़ोसियों को बता दी | पडोसी बड़ा ही घाघ था | रात को जब सभी लोग
खा – पीकर सो गए, तो पडोसी ने अपने घर वालो को जगाया और कहा, ‘चलो, हम लोग
अशर्फियों को निकाल लेते है |’ पडोसी और उसके घर वाले कुदाल आदि लेकर खेत में
पहुँच गए | उन्होंने बताई हुई जगह पर खोदा | सभी अवाक् थे, क्योकि वहां एक नहीं,
पांच - पाँच धातु के पात्र थे | पर सब में अशर्फिया नहीं, अपितु बड़े – बड़े पहाड़ी
बिच्छु थे | पडोसी ने कहा, ‘रामू ने हम
लोगो को मारने की अच्छी योजना बनाई थी | हमें इसका प्रत्तुतर
देना ही होगा |’ उसने अपने घर वालो से कहा, ‘पांचो पात्रो को उठाकर ले चलो और रामू
का छप्पर फाड़कर इन बिच्छुओ को उसके घर में गिरा दो, ताकि इन बिच्छुओ के काटने से
पति – पत्नी की इहलीला समाप्त हो जाये |’ घर वालो ने वैसा ही किया और रामू के
छप्पर को फाड़कर बिच्छुओ को उसके घर में गिराने लगे | लेकिन ईश्वर की लीला देखिये |
वे सारे बिच्छु घर में गिरते ही अशर्फिया बन गए | सुबह – सुबह रामू उठा तो उसने
भगवान को धन्यवाद् दिया और अपनी पत्नी से कहा, ‘देखो ! देने वाला जब भी देता, देता
छप्पर फाड़ के |’
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