माँ ने आलसी बेटे को सही राह दिखाई
एक विधवा माँ ने इकलोते पुत्र को मेहनत – मजदूरी
कर खूब पढ़ाया – लिखाया | लड़का शिक्षित तो हो गया, किन्तु समझदारी नहीं आई | माँ की
दी हुई सुविधाओ से वह आलसी हो गया | माँ उसे नोकरी करने को कहती तो वह कल पर टाल
देता | थक – हारकर माँ ने यह कहना बंद कर दिया, किन्तु अब वह रोज उसे खाना परोसकर
यह अवश्य कहती, ‘बेटा ! ठंडी रोटी खा लो |’लड़का समझ नहीं पता की माँ गर्म रोटी को
ठंडी रोटी क्यों कहती है ? कुछ दिनों बाद माँ ने उसका विवाह कर दिया | लड़का तब भी
नहीं सुधरा और कोई काम नही खोजा | फिर एक दिन माँ को किसी काम से बाहर जाना था, तो
वह जाते समय बहु को कह गयी की जब भी तुम्हारा पति आये तो उसे खाना परोसकर कहना की
ठंडी रोटी खा लो | बहु ने ऐसा ही किया | आज लड़का नाराज हो गया, क्योकि माँ के बाद
अब पत्नी भी वह कह रही है | उसने अपनी पत्नी से कहा, ‘रोटी ठंडी कैसे हुई जब की
तुम गर्म बना रही हो ?’ बहु बोली, ‘आप माँ से पूछना | उन्होंने ही आपको ऐसा कह
भोजन परोसने को कहा था |’ लड़के ने माँ के आने पर कारण पूछा तो माँ बोली, ‘बेटा ! तू
खुद ही सोच की जो दुसरो की कमाई से रोटी खाई जाये वह ठंडी और बासी ही तो कहलाएगी |
गर्म रोटी तो तू तब खायेगा, जब तू खुद कमाकर लायेगा |’ लड़का माँ की बात सुनकर शर्म
से पानी – पानी हो गया | कुछ ही दिनों में लड़के ने नोकरी पा ली |
कथा का संकेत यह है की शिक्षा की साथर्कता विचारो
में परिपक्व संपनता और व्यवहार में आत्म – निर्भरता लेने में निहित है |
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