Thursday 18 June 2015

सुख बाँटने का जरीया है दान

Posted by- radiateashok
सुख बाँटने का जरीया है दान


सर्वे भवन्तु सुखिन : सर्वे सन्तु निरामया ....... सिर्फ एक धारणा नहीं है | यह मूर्त रूप ले सके ,इसके लिए व्यवस्था भी बनाई गई है  | दान उसी व्यवस्था का एक हिस्सा है | कहा जाता है की बांटने से दुःख घटते है , जबकि सुख बढ़ते है | दान सुख की साझेदारी का जरिया है | अगर रुढियो से मुक्त होकर दान की सच्ची अवधारणा को समझा और उस पर अमल  किया जा सके तो यह मनुष्यता के समग्र कल्याण का माध्यम बन सकता है | हमारी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत दोनों में ही दान एक परंपरा के रूप में स्थापित है , जिसकी बड़ी महिमा बताई गई है | माना गया है की सह्दयता और सहायता करने की सोच के साथ किसी जरूरतमंद को कुछ देने का अर्थ ही दान है | अपनी वास्तु पर से अधिकार हटाकर , जिसको दिया जा रहा है उसे उसका स्वामी बना देना दान कहलाता है | यह अधिकार अगर किसी सुपात्र के हिस्से आता है तो देने वाले के मन को संतोष मिलता है और समाज के लिए भी हितकारी सिद्ध होता है | यानी जो वस्तु अपनी इच्छा से किसी को देकर वापस न ली जाये , और  साथ ही जिसे दी जा राही है उसके भी काम आये , वही सही अर्थो में दान है | भारतीय परंपरा में दान को कर्तव्य और धर्म दोनों ही माना जाता है | यही कारण है की दान की महिमा को हमारी सभ्यता में बड़े ही धार्मिक और सात्विक रूप में स्वीकार किया गया है | इसे बहुत कल्याणकारी कर्म माना गया है , क्योकि इससे त्याग करने की क्षमता बढती है | धर्मग्रंथो में बताया गया है की हर व्यक्ति को अपनी कमाई का एक नियत भाग जरुरतमंदो को दान करना ही चाहिए | त्याग का यह भाव हमें सावर्जनिक जीवन से जोड़कर सर्वे भवन्तु सुखिन :     की सोच की और मोड़ता है | इसलिए दान में अन्न , जल , वस्त्र , धन -  धान्य , शिक्षा , गाय – बेल आदि दिए जाने की रीती है दान की परंपरा का आधार ही यह सोच है की दान से अगर किसी जरूरतमंद को लाभ मिलता है तो यह सम्पूर्ण समाज के लिए लाभकारी है इसलिए सही मायनो में देखा जाये तो दान एक सामाजिक व्यवस्था है | ज्जिसे आध्यात्मिक भूमि पर समाज में संतुलन बनाने के उदेश्य से ही खड़ा किया होगा | यही कारण है की दान किसे दिया जाये , यह भी एक बड़ा सवाल है | जिस व्यक्ति को दान दिया जाता है उस व्यक्ति को दान का पात्र कहते है | दान सुपात्र को ही दिया जाये , यह बात हमारे धर्मग्रंथो में तो वर्णित है ही , एक वयाव्हारिक विचार भी है | यानी कोई प्यासा है , उसे आप पानी पिलाये तो वह ज्यादा पुण्य का कार्य है | बजाय इसके की आप किसी विशेष तिथि या अवसर की प्रतीक्षा करे और उस दिन पुण्यलाभ के उदेश्य से किसी को अत्यंत बहुमूल्य वास्तु दान करे | ठीक इसी तरह भूके इंसान को रोटी देकर जो पुण्य मिलेगा वह चमक – धमक से भरे किसी बड़े आयोजन में सेकड़ो – हजारो लोगो को इकठा कर भोजन करवाने से नहीं मिल सकता | अनाथ बच्चो को सहारा देना जैसे कार्य भी दान ही है | अभावग्रस्त जीवन जी रहे ऐसे लोग ही दान के सुपात्र भी है |

दिए गए दान से अभावो से जूझते जीवन को रौशनी की किरण मिले , इससे बेहतर क्या हो सकता है | 

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