Monday 22 June 2015

थोड़ी आजादी थोड़ा अनुशाशन

Posted by- radiateashok
थोड़ी आजादी थोड़ा अनुशाशन

समय के साथ बच्चो की परवरिश चुनोतिपूर्ण होती जा रही है | माता - पिता के लिए यह तय कर पाना मुश्किल हो जाता है की बच्चो की परवरिश कैसे की जाये की उनके व्यक्तित्व का विकाश सही ढंग से हो | अपने मन में उठने वाले ऐसे ही सवालो के जवाब जानने के लिए पढ़े यह लेख ?.....
जरा याद कीजिये की अपने बच्चे के साथ आप पिछली बार कब खिलखिला कर हँसे थे | याद नहीं आ रहा ....आये भी तो कैसे ? महानगरो में रहने वाले ज्यादातर कामकाजी अभिभावकों के पास इतना वक्त ही नहीं होता की वे कभी तनावमुक्त होकर अपने बचे के साथ यु ही बातचीत कर सके | उनके साथ माता – पिता की बातचीत केवल निर्देश देने तक सिमित रह गई है | ऐसे में बच्चो को ऐसा लगता है की पेरेंट्स से बातचीत का मतलब है , डांट सुनना | इसलिए वे पेरेंट्स से कतराने लगते है | बच्चो से दुरी बनाकर उन्हें अनुशासित नहीं किया जा सकता |

जुडाव है जरुरी

जब बच्चे स्कूल जाना शुरू करते है तो उसके बाद से ही उनके व्यक्तित्व का स्वतंत्र विकाश शुरू हो जाता है | घर से बाहर दोस्तों और टीचर्स के साथ उनके अनुभवों की दुनिया विस्तृत होने लगती है  समय की रफ़्तार के साथ आजकल बच्चो का भावनात्मक विकाश भी बहुत तेजी से हो रहा है | इसलिए आजकल नो – दस साल की उम्र से ही उन्हें पर्सनल स्पेस की जरुरत महसूस होने लगती है |पेरेंट्स को उनके व्यवहार में आने वाला यह बदलाव अटपट जरुर लग सकता है , पर ऐसी स्थति में बच्चो पर नाराजगी दिखाने के बजाय धेर्य से काम लेना चाहिए |

आपसी समझ से बनेगी बात

जहाँ बच्चो और पेरेंट्स के बिच सहज सम्बन्ध होते है , वहा उनके व्यक्तित्व का विकाश बेहतर ढंग से होता है | यह न भूले की बड़ो की तरह बच्चो का भी आत्मसम्मान होता है | जिन बातों को हम छोटी समझते है , वे उनके लिए बहुत बड़ी हो सकती है | मिशाल के तोर पर मेहमानों के सामने बच्चे को डांटना , दुसरो से उसकी तुलना करना या हमेशा उसकी खामियों के बारे नमे ही बात करना आदि पेरेंट्स की ऐसी सामान्य आदते है , जिनसे बच्चो का कोमल मन बुरी तरह आहत होता है | उसमे पेरेंट्स के प्रति विद्रोह की भावना पनपने लगती है  | इसलिए हमें सयंत ढंग से अपनी ऐसी आदतों में बदलाव लाने की कोशिश करनी चाहिये |

सीखे गलतियों से   
  
यह एक मनोवेज्ञानिक तथ्य है की अपनी गलतियों में सिखा गया सबक व्यक्ति को ताउम्र याद रहता है | बच्चो के मामले में भी यही बात लागु होती है | इसका मतलब यह नहीं है की आप उन्हें गलतियां करने की खुली छुट दे , पर छोटी – छोटी बातों को लेकर बेवजह रोक-  टोक से बच्चे का आत्मविश्वास कमजोर पड़ने लगता है और कोई भी नया काम शुरू करने से पहले वह हार के बारे में सोचकर नर्वस हो जाता है |

खुलकर बोलने की आजादी

अपने बच्चो को बहुत ज्यादा शिष्टाचार सिखाने की कोशिश में कई बार पेरेंट्स इउनके द्वारा कही गई हर बात को गलत ठहराते हुए उन्हें इतना टोकते है की वे माता – पिता के सामने कुछ भी बोलने से डरने लगते है | उनके आत्मविश्वास की बुनियाद कमजोर पद जाती है | ऐसी स्थति में बच्चो को दुसरो के सामने सही ढंग से बोलने का सलीका जरुर सिखाये , पर खुद उनके साथ अपने संवाद का स्तर इतना सहज रखे की वे खुलकर आपके सामने अपने दिल की बाते कर सके |


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