Thursday 28 May 2015

गाय का अर्थशास्त्र

Posted by- radiateashok
गाय का अर्थशास्त्र




हमारी संस्कृति में गाय की पूजा की जाती थी ,क्योकि वह धर्म , अर्थ , काम ,और मोक्ष चारो पुरुषार्थो की पूर्ति में मददगार थी  | सामलाती चारागाहों में चराई करके गाय गोबर का उत्पादन करती थी जिससे भूमि का स्वास्थ्य बना रहता था | यह धर्म हुआ | गाय दूध देती थी और बैल पैदा करती थी | बैल से खेती की जाती थी |  यह अर्थ हुआ |  गाय के दूध में सालिड नान फैट की मात्रा ज्यादा रहती है | यह मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए विशेषकर बुद्धि के विकास के लिए लाभदायक होता है | गाय का दूध पिने से लोगो का स्वास्थ्य अच्छा बना रहता था |यह काम हुआ | गाय के स्पर्श से मनुष्य का भगवान से संपर्क बनता है | यह मोक्ष हुआ | गाय से चारो पुरुषार्थो को हासिल करने में मदद मिलती थी | पिछली राजग सरकार ने गोरक्षा के लिए आयोग बनाया था | अपनी रिपोर्ट में आयोग ने कहा था की हमारी संस्कृति में गोरक्षण अंधविश्वास के कारण नहीं, बल्कि गाय की उपयोगिता के कारण किया जाता था | पिछले 50 वर्सो में गाय के अर्थसास्त्र में मोलिक परिवर्तन हो गया है सामलाती चारागाह प्राय लुप्त हो गए है | पूर्व में इन चरागाहों से गाय अपना पेट भरकर आती थी | उसे अतिरिक्त भोजन नहीं देना पड़ता था | घास को वह दूध और गोबर में परिवर्तित कर देती थी | गाय के गोबर से खाद बनाई जाती थी, जो खेत की उर्वक्ता को बनाये रखती थी | बीते समय में सामलाती चारागाहों पर बाहुबलियों ने कब्ज़ा कर लिया है | फलस्वरूप गाय को चराने के लिए घास उपलब्ध नहीं है | अब गाय केवल भूसे पर आश्रित हो गई है | चारागाह के अभाव में गोबर का उत्पादन कम हो रहा है | उपलब्ध गोबर खेत की उर्वक्ता को बनाये रखने के लिए पर्याप्त नहीं है | अतः किसानो को रासायनिक फर्टिलाइजर का सहारा लेना पड़ रहा है | गाय को पालने की अनिवार्यता समाप्त हो गई है | साथ – साथ ट्रेक्टर ने बेलो का सफाया कर दिया है | शहरो में तमाम रोजगार उत्पन होने के कारण गांव से पलायन हुआ है | गावं में श्रमिक उपलब्ध नहीं है | बच्चो की शिक्षा पर जोर देने से इनके द्वारा भी चराई नहीं कराई जा रही है | फलस्वरूप गाय को चराई के लिए ले जाना कठिन हो गया है | गाय को चरना पसंद है | भेंस की प्रकति भिन्न है | उसे चरने के लिए नहीं ले जाना होता है | इसके अलावा भेंस के दूध में फैट ज्यादा होता है , जो उपभोक्ता को पसंद है | गाय की नर संतान यानि बछड़े का वध करने पर कई राज्यों में प्रतिबन्ध है | ये बछड़े किसान के लिए तनिक भी उपयोगी नहीं है | भेंस की नर संतान का वध करना वर्जित नहीं है | इन अनेक कारणों से किसान भेंस को ज्यादा पसंद कर रहा है और गाय की संख्या कम होती जा रही है धर्म , अर्थ , काम और मोक्ष की चोकड़ी में अर्थ बिदक गया है | गाय से भूमि का सरक्षण हो, बच्चो की बुद्धि बढे| महाराजा रणजीत सिंह ने गोवध पर प्रतिबन्ध लगाया तो किसान की आर्थिकी को भी संभाला | उस समय लोग स्वाद के लालच में गोमांस खाना चाहते थे | 

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