Mahatma Gandhi: अहिंसा का पहला पाठ
अहिंसा का पहला पाठ |
गांधीजी का जन्म 2 अक्टुम्बर 1869 को पोरबंदर गुजरात में
हुआ था | गांधीजी का पूरा नाम मोहनदास करमचंद गाँधी था हम उन्हें प्यार से बापू
पुकारते है उन्ही की प्रेरणा से हमारा देश 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ था तो
साथियों आज की पोस्ट में गांधीजी के अहिंसा के पाठ के बारे में बताया जा रहा है |
बात उन दिनों की है जब गांधीजी हाईस्कूल में पढ़ रहे थे | वह गलत लोगो
की सांगत में पड गए | इस सांगत का असर उनकी जीवन शैली पर भी पड़ने लगा | वे उन
ल्लाद्को के साथ धुम्रपान करने लगे | मांसाहार भी उन्होंने शुरू कर दिया इन
व्यसनों को पूरा करने के लिए एक – दो बार अपने ही घर में चोरी भी की | उसके बाद
आत्मग्लानी में जीवन से उकताकर आत्महत्या का विचार करने लगे | वह बराबर यह महसूस
कर रहे थे की हम गलत रह पर है | उन्होंने तय किया और उस रह से बाहर आने का प्रयास
शुरू कर दिया |
अब वे अपनी कमियों को त्यागना चाहते थे अतः उन्होंने अपनी गलतियों को
स्वीकारने का एक तरीका निकला | उन्होंने अपनी सभी गलतियों को ईमानदारी से एक पत्र
में विस्तारपूर्वक लिखा और उसे अपने पिताजी के हाथ में थमा दिया | वह उन दिनों बड़े
असव्स्थ चल रहे थे | पिताजी अपने पुत्र के लिखे उस पत्र को पढ़ते जा रहे थे और उनकी
आँखे नाम होती जा राही थी | पूरा पत्र पढ़ने के बाद उन्होंने पत्र के टुकड़े – टुकड़े
कर दिए और उनकी आँखों से आंसू बहने लगे |
गांधीजी भी अपने पिता के समक्ष खूब रोये | पिता के प्रेम से भरे उन
आंसुओ ने गांधीजी को ऐसे भिगोया की वे खुद भी रो रहे थे और ऐसा महसूस कर रहे थे
जैसे पिता और उनके आंसू मिलकर उनकी आत्मग्लानी को धोते जा रहे थे | वह खुद को
शुद्ध महसूस करते जा रहे थे | लगा जैसे उन आंसुओ से उनके सभी अपराध धुल गए | गाँधी
के लिए अपने जीवन में यह अहिंसा का पहल पाठ था जो उनके पिता ने उन्हें पढ़ाया |
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